नवरात्र का चौथे दिन माता का चौथा स्वरूप माँ कुष्माण्डा
सिटी संवाददाता : चंद्रदेव बरनवाल
सोनो, जमुई : माँ दुर्गा भवानी की चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मन्द हलकी हंसी अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है ।
जब सृष्टि का अस्तितत्व नहीं था चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्ही देवी ने अपने इर्षित हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इसके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तितत्व था ही नहीं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्ही में है। इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है।
इनके तेज की तुलना इन्ही से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी देवता इनके तेज और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। इन्ही के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही है। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्ही की छाया है। इनकी आठ भुजाएँ हैं।
अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं । इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपुष्प कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिध्दियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कुष्माड कुम्हड़े को कहते हैं। बालियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। नवरात्र पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है।
अत: इस दिन उसे अत्यन्त पवित्र और अचन्चल मन के कुष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा उपासना के कार्य में लगना चाहिये। माँ कुष्माण्डा की उपासना से भक्तों को समस्त रोग शोक विनष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु , यश , बल और आरोग्य की वृध्दि होती है। माँ कुष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्तिसे भी प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे ह्रदय से इनका शरणागत बन जाय तो उसे फिर अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। हमे चाहिए कि हम शास्त्रों और पुराणों में वर्णित विधि विधान के अनुसार माँ दुर्गा की उपासना और भक्ति के मार्ग पर अहर्निश अग्रसर होना चाहिए।
क्योंकि माता की भक्ति मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होंने लगता है । यह दु:ख-स्वरूप संसार उसके लिए अत्यन्त सुखद और सुगम बन जाता है । माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। मां कुष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख समृध्दी और उन्नति की ओर ले जाने वाली है।
अत: अपनी लौकिक पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये ।
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