जल संरक्षण हेतु जामुन वृक्ष की लकड़ी अपनाएं – पर्यावरणविद राम बिलास शाण्डिल्य की अपील
सिटी संवाद : प्रो० रामजीवन साहू
श्री शाण्डिल्य ने बताया कि जामुन का फल न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी उपयोगी है। विशेषकर वर्षा ऋतु में इसका सेवन पाचन तंत्र को सशक्त करता है। आयुर्वेद में जामुन को औषधीय फल माना गया है, जो मधुमेह (डायबिटीज) के नियंत्रण में विशेष रूप से कारगर है। जामुन की गुठली का चूर्ण नियमित सेवन से भी लाभ होता है, जबकि इसकी टहनी का दातून दाँतों की मजबूती के लिए उपयुक्त है।
श्री शाण्डिल्य ने बताया कि प्राचीन भारत में जल शुद्धिकरण के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता था, जिनमें जामुन वृक्ष की लकड़ी का विशेष स्थान था। कुओं की खुदाई के समय सबसे नीचे जामुन की लकड़ी डाली जाती थी, जिसे ग्रामीण भाषा में ‘जमौठ’ कहा जाता है। तालाबों की खुदाई में भी इसका उपयोग किया जाता रहा है। यहाँ तक कि नावों के तल में भी इस लकड़ी का प्रयोग जल को शुद्ध बनाए रखने हेतु होता था।
उन्होंने कहा कि आज भी यदि लोग अपने घरों के पानी की टंकी में एक या दो फीट लंबी जामुन वृक्ष की सूखी लकड़ी डाल दें, तो वह जल को स्वच्छ, शुद्ध और बैक्टीरिया रहित बनाए रखती है। इस लकड़ी की खासियत यह है कि यह पानी में सड़ती नहीं, और लंबे समय तक प्रभावी बनी रहती है।
श्री शाण्डिल्य ने अंत में सभी नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं और पर्यावरण प्रेमियों से अपील की कि वे जल संरक्षण हेतु इस पारंपरिक लेकिन प्रभावशाली विधि को अपनाएं और स्वस्थ समाज एवं सतत भविष्य की दिशा में योगदान दें।
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