वट सावित्री व्रत पर पर्यावरण भारती द्वारा वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश
सिटी संवाददाता : प्रो० रामजीवन साहू
पिपरिया ग्राम/लखीसराय : वट सावित्री व्रत के पावन अवसर पर पर्यावरण भारती द्वारा सोमवार को लखीसराय जिले के पिपरिया ग्राम स्थित चैती दुर्गा मंदिर परिसर में विशेष वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देव वृक्ष बरगद सहित कटहल, बेल, नींबू एवं कदम्ब के कुल पाँच पौधे लगाए गए। कार्यक्रम का नेतृत्व पर्यावरण प्रहरी प्रशांत कुमार यदुवंशी ने किया।
कार्यक्रम में उपस्थित पर्यावरण भारती के संस्थापक, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के प्रांत संयोजक एवं अखिल भारतीय पेड़ उपक्रम टोली के सदस्य राम बिलास शाण्डिल्य ने वृक्षारोपण के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि —
"ग्लोबल वार्मिंग से धरती माता की रक्षा के लिए वृक्षारोपण अभियान आज की महती आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक को इसमें अपनी सहभागिता देनी चाहिए, तभी पर्यावरण संतुलन संभव है।"
इस अवसर पर शाण्डिल्य ने महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा साझा किए गए एक प्रेरक बचपन के प्रसंग का उल्लेख किया। राष्ट्रपति महोदया ने बताया कि उनके पिता जब सूखे पेड़ों से जलावन के लिए लकड़ी काटते थे, तो पहले उन सूखे वृक्षों से क्षमा याचना करते थे — यह मानते हुए कि हरे रहने के दौरान उन वृक्षों ने मानव जाति को फल, फूल, छाया और प्राणवायु (ऑक्सीजन) प्रदान की थी। यह प्रसंग आज के भौतिकवादी समय में प्रकृति के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता की आवश्यकता को दर्शाता है।
शाण्डिल्य ने कहा कि भारत में वट सावित्री व्रत एक प्राचीन परंपरा है, जिसे ज्येष्ठ अमावस्या को देशभर की सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं। इस व्रत की उत्पत्ति राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री से जुड़ी है, जिन्होंने अपने व्रत के प्रभाव से पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस प्राप्त किए थे।
व्रत के पूजन में बरगद के वृक्ष की पूजा आवश्यक मानी जाती है। इसलिए उन्होंने आग्रह किया कि —
"देव वृक्ष बरगद का पौधारोपण सार्वजनिक स्थलों पर किया जाए, ताकि व्रत-पूजन के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का संकल्प भी लिया जा सके। यह अत्यंत पुनीत कार्य है।"
पौधारोपण अभियान में भाग लेने वाले प्रमुख व्यक्तियों में वार्ड सदस्य ऊषा देवी, रिंकू देवी, पूजा देवी, सुलेना देवी, पर्यावरण भारती से राम बिलास शाण्डिल्य, प्रशांत कुमार यदुवंशी, साथ ही ललन कुमार, राहुल कुमार, गोकर्ण कुमार, राजीव रंजन कुमार, रौशन कुमार और कैलाश यादव शामिल थे।
इस आयोजन ने पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक परंपराओं को एक साथ जोड़ते हुए सामुदायिक सहभागिता का एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया।
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(प्रेषक: पर्यावरण भारती, लखीसराय)
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