वैश्विक मंचों पर भारतीय प्रतिनिधित्व शशि थरूर की भूमिका और अपेक्षाएं : निखिल कुमार
सिटी ब्यूरो रिपोर्ट: राजीव रंजन
भारत आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ उसकी वैश्विक स्थिति केवल आर्थिक और सामरिक ताक़त से नहीं, बल्कि विचारधारा, संवाद और सॉफ्ट पावर से भी परिभाषित हो रही है।
इस परिवर्तनशील परिप्रेक्ष्य में जब शशि थरूर जैसे विद्वान, पूर्व राजनयिक और सांसद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से देश और विदेश दोनों जगह ध्यान आकर्षित होता है। संयुक्त राष्ट्र में दशकों तक अपनी सेवाएं देने वाले शशि थरूर न केवल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जानकार रहे हैं, बल्कि उन्होंने भारत की वैश्विक छवि को प्रगतिशील, समावेशी और बौद्धिक आधार प्रदान किया है।
थरूर आज भी भारत की ओर से अंतरराष्ट्रीय बहसों में मुखर और तार्किक आवाज़ बने हुए हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि थरूर जैसे नेता भारत की ‘सॉफ्ट पावर को सशक्त करने में अहम भूमिका निभाते हैं। उनकी भाषण-शैली, वैश्विक दृष्टिकोण और बहुपक्षीय समझ उन्हें एक ऐसा प्रतिनिधि बनाती है जो न केवल भारत की बात करता है, बल्कि वैश्विक समस्याओं के समाधान में भी सक्रिय भागीदारी निभाता है।
शशि थरूर का वैश्विक दृष्टिकोण, संयुक्त राष्ट्र में दीर्घकालिक सेवा और अंग्रेजी भाषा पर अद्भुत नियंत्रण उन्हें एक प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय वक्ता बनाते हैं। वे जलवायु, वैश्विक शासन, उपनिवेशवाद की विरासत और दक्षिण एशियाई दृष्टिकोण जैसे विषयों पर भारत की आवाज़ को गूंज प्रदान करते हैं। जब वे भारत की विविधता, लोकतंत्र और उदार मूल्यों की बात करते हैं, तो यह केवल कूटनीति नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की गूंज होती है।
किन्तु हर प्रभावशाली प्रतिनिधित्व के साथ कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न भी खड़े होते हैं। क्या एक निर्वाचित प्रतिनिधि जब विदेश जाता है, तो वह भारत सरकार की आधिकारिक नीति का प्रतिनिधित्व करता है या केवल अपनी वैचारिक समझ का, क्या उनके वक्तव्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की एकजुट राय के रूप में ग्रहण किए जाते हैं, या फिर वे राजनीतिक मतभेदों की छाया में आ जाते हैं, यह प्रश्न तब और जटिल हो जाता है जब प्रतिनिधि किसी विपक्षी दल से संबंध रखते हों।
एक और चिंता इस बात की भी है कि इन अंतरराष्ट्रीय अभियानों का मूल्यांकन कैसे हो। क्या उनकी उपस्थिति भारत के हितों को ठोस रूप से आगे बढ़ाती है, या वे केवल विचारधारा का प्रचार भर बन कर रह जाती हैं। जनता को यह जानने का अधिकार है कि इन अभियानों से क्या प्रत्यक्ष लाभ देश को मिले।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि जब देश के भीतर राजनीतिक असहमति हो, तब विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व और अधिक जिम्मेदारीपूर्ण हो जाता है। वैश्विक मंचों पर भारत को एक एकीकृत, परिपक्व और संतुलित राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करना किसी भी प्रतिनिधि का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए, चाहे वह सरकार में हो या विपक्ष में।
शशि थरूर जैसे नेता भारत के लिए एक 'वैश्विक ब्रांड एंबेसडर' की भूमिका निभा सकते हैं, यदि वे राष्ट्रीय हित और राजनीतिक मतभेदों के बीच स्पष्ट रेखा खींच सकें। साथ ही, ऐसी यात्राओं और भाषणों की पारदर्शिता, उद्देश्य और उपलब्धियों का स्वतंत्र मूल्यांकन भी आवश्यक है, ताकि यह केवल संवाद का मंच न बनकर, वास्तविक कूटनीतिक साधन सिद्ध हो सके।
अंततः भारत की वैश्विक छवि बनाने में शशि थरूर जैसे नेताओं की भूमिका अनिवार्य और सराहनीय है, बशर्ते वह राष्ट्रीय दृष्टिकोण से जुड़ी हो, न कि व्यक्तिगत या दलगत विचारों से प्रेरित।
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