इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, पीड़िता की पैरवी करेगा जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन - City Channel

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Friday, March 28, 2025

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, पीड़िता की पैरवी करेगा जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, पीड़िता की पैरवी करेगा जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन


दिल्ली: 11 साल की एक बच्ची से बलात्कार के प्रयास के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए उस पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को गैर-सरकारी संगठन "तटवासी समाज न्यास" ने बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करार दिया है। शीर्ष अदालत ने जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) की विशेष अनुमति याचिका स्वीकार करते हुए पीड़िता की पैरवी की अनुमति दी है।

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) एक ऐसा नेटवर्क है जो देश के 416 जिलों में 250 से भी अधिक गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर बाल अधिकारों की सुरक्षा पर काम करता है। जमुई जिले में बाल अधिकारों के लिए कार्य कर रहा तटवासी समाज न्यास जेआरसी का एक महत्वपूर्ण सहयोगी है।

"एक भी बच्चा अन्याय का शिकार हुआ तो जेआरसी साथ खड़ा होगा"

तटवासी समाज न्यास के निदेशक कन्हैया कुमार सिंह ने कहा, "अगर देश में एक भी बच्चा अन्याय का शिकार है, तो जेआरसी उसके साथ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में स्वत: संज्ञान लेना यह दर्शाता है कि न्यायपालिका बच्चों के अधिकारों को लेकर संवेदनशील है। जेआरसी इस बच्ची को न्याय दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। हम जिले में बाल विवाह, बाल यौन शोषण और बाल मजदूरी जैसे अपराधों के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध हैं।"

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को स्तब्ध करने वाला और असंवेदनशील करार दिया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि वक्ष पकड़ना, सलवार का नाड़ा खोलना और पीड़िता को पुलिया के नीचे घसीटकर ले जाना बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह फैसला कानून की किसी भी समझ से रहित है।

सरकार और संबंधित पक्षों को नोटिस जारी

सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और मामले से जुड़े सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की खंडपीठ ने हाई कोर्ट के फैसले में की गई टिप्पणियों को "अमानवीय" और "चौंकाने वाला" बताया। खासतौर पर फैसले के पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियों को घोर असंवेदनशील करार दिया गया।

तीन साल तक नहीं हुई एफआईआर, कानूनी प्रक्रिया में लापरवाही

जेआरसी की ओर से पीड़िता के परिवार की पैरवी कर रही अधिवक्ता रचना त्यागी ने कहा, "इस मामले में साढ़े तीन साल तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई और बिना औपचारिक जांच के कानूनी प्रक्रिया तीन साल तक चलती रही। यह लापरवाही एक गरीब और कमजोर परिवार की बच्ची के साथ गंभीर अन्याय है। हमें राहत मिली है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार कर लिया है। अब हम पूरी ताकत से पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"

हाई कोर्ट ने आरोपों में किया था फेरबदल

इस मामले में निचली अदालत ने आरोपियों पवन और आकाश को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत तलब किया था। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बच्ची के वक्ष को छूना और जबरन पुलिया के नीचे घसीटना बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। हाई कोर्ट ने आरोपों में फेरबदल करते हुए धारा 354(बी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 लगाई थी, जो अपेक्षाकृत कम गंभीर हैं।

न्याय की लड़ाई में साथ खड़ा है जेआरसी

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे संगठनों को नई उम्मीद मिली है। जेआरसी और उससे जुड़े संगठन अब यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि पीड़िता को न्याय मिले और भविष्य में किसी भी बच्चे के साथ इस तरह का अन्याय न हो। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बाल सुरक्षा और अधिकारों की लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।


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