मटके और सुराही की ठंङक आज भी बरकरार
अलीगंज/जमुई : अलीगंज प्रखंङ मे संसाधनो के विकास के बावजूद परंपरागत वस्तुओ का महत्व कभी भी कम नही होता है। भीषण गर्मी मे जहाँ एसी, कुलर, फ्रिज काम नहीं कर रहे। वहीं मिट्टी से बना हुआ घङा व सुराही लोगो का गला तर कर रहा है।
आधुनिकता ने इसके रंग व आकार मे परिवर्तन जरूर लाया है। अब इन घड़ों में नल भी लगा हुआ बाजार मे उपलब्ध कराया गया है। जो ग्राहको को भी पसंद आ रहा है। गांव के लोग इस तरह के मिट्टी का घङा को देशी फ्रिज बताकर उत्सुकता से इसे खरीदते है। कई रसुकदार घरों मे भी लोग इन्हीं घङा का ठंङा पानी अभी गर्मी मे इस्तेमाल कर रहे है।
इनके बाजार की बात करे तो अलीगंज बाजार, मिर्जागंज, चंद्रदीप बाजार मे मिट्टी के बर्तनों की दुकाने सजी है। लोग मटका यानी घड़ा और सुराही को खुद खरीददारी कर रहे है। प्रचंड गर्मी मे कुम्हारों द्वारा कई किस्म के घङे व सुराही बाजार मे बेचे जा रहे है। नल लगे हुए घड़ों की बढी मांग बढने के साथ-साथ इनकी कीमतों मे भी बढोतरी हुई है। एक घङे की कीमत 150 से 250 रूपये है। वहीं सुराही 120 से 150 रूपये तक बिक रहा है।
अलीगंज स्थित मटका बेचने वाले दुकानदार बच्चू पंङित ङबलू पंङीत ने बताया कि हम लोगो का यह पुस्तैनी कारोबार है। पिता जी के बाद बीते 20 वर्षों से हम दोनो भाई इस दुकान को चला रहे है। समय के साथ कुछ बदलाव आया है पहले सुराही और मटका बिना नल का ही बिकता था। लेकिन अब इसमे नल लगाया जा रहा है।
खरीदारी कर रहे कृष्ण कुमार, बासुकी सिंह ने बताया कि घर मे फ्रिज भी है लेकिन हमे मटके का पानी पीने की ही आदत है। मटके का पानी शीतल रहने के साथ - साथ बेहतर स्वाद मुक्त होता है। सुराही का मोल-तोल क रहे है। ब्रह्मदेव सिंह ने बताया कि मिट्टी के बने बर्तन को शुद्ध माना गया है।
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