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सिटी ब्यूरो रिपोर्ट : झाझा
झाझा प्रखंड अंतगर्त धमना गांव स्थित काली मंदिर वर्षो से हो रही रही वार्षिक पूजा इस बार भी लोगो के द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा जिसको लेकर मंदिर परिसर मे कलश की स्थापना भी पूरी विधि विधान के साथ हो चुका। वही आगामी 22 जून को मंदिर परिसर मे वार्षिक पूजा भव्य रूप से मनाया जायेगा। इस संदर्भ मे पूजा कमेटी के सदस्यो की ओर से तैयारी भी जोरो से की जा रही है। बताते दे कि कई वर्षो से लोगो के धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहां आस पास के गांवो सहित दूर-दूर तक के श्रद्वालु पूजा अर्चना कर मन्नते मांगते है। कहा जाता है कि जो भी यहां आकर सच्चे मन से मन्नते मांगते है , उनकी मन्नते माॅ काली अवश्य पूरी करती है।
इस मंदिर का पुराना इतिहास-गांव के बड़े बुजुर्गो का कहना है कि राजा महाराजा के समय ही मंदिर की स्थापना की गयी थी और तब से वार्षिक पूजा का आयोजन होते चला आ रहा है जो अब इस क्षेत्र के लिये पारंपारिक पूजा बन चुका है।मंदिर की स्थापना सदियो वर्ष पूर्व हुई थी। ग्रामीण बताते है कि पहले मंदिर का आकार छोटा था बाद मे धीरे धीरे सभी श्रद्वालुओ के सहयोग से मंदिर को भव्य रूप का आकार दिया गया।
वर्तमान पूजारी देवनारायण पांडेय सहित गांव के मुखिया रविंद्र कुमार शर्मा, पप्पू सिंह, सौदागर साह, रिंकू देवी का कहना है कि इस मंदिर की अलग ही महिमा है जिस कारण दूर-दूर से श्रद्वालु यहां आकर माॅ की पूजा अर्चना करते है। और खास कर मंगलवार एवं शनिवार के दिन तो पूजा के लिए बडी संख्या मे श्रद्वालुओ के पहुंचने से मंदिर परिसर मे मेले सा दृश्य देखने को मिलता है।
नौ दिन पूजा अर्चना के बाद मंगलवार को इस मंदिर मे वार्षिक पूजा के अवसर पर 2500 से 3000 पाठा की बलि दिया जाता है। मंगलवार को रात्रि बारह बजे माॅ काली की पूजा कर पाठा बलि देना शुरू होता है जो प्रातःकाल तक जारी रहता है और फिर हवन कार्यक्रम के बाद माॅ को प्रसाद का भोग लगाया जाता है। पूजारी का कहना है कि श्रद्वालु यहां पर आकर सच्चे मन से जो भी मन्नते मांगता है वह अवष्य पूरा हो जाता है। जिसके लिए फुलहास भी किया जाता है।धमना काली मंदिर मे पूजा हो जाने के बाद ही आसपास के क्षेत्रो मे काली पूजा किया जाता है।
बताया जाता है कि जब माॅ की प्रसाद को दक्षिण दिशा मे पूजारी ले जाते है तो उस वक्त इंसान के साथ साथ मंदिर परिसर मे पक्षी भी नही रहते है मानो पूरा मंदिर परिसर विरान रहता है। और ऐसा कहा जाता है कि साक्षत देवी प्रकट होकर इस प्रसाद को ग्रहण करती है।
ग्रामीणो का कहना है कि जब पूजा का कार्यक्रम मंदिर मे शुरू हो जाता है तो इस गांव के निवासी अपने घरो मे मीठा व्यजंन, पूरी, खीर, पकवान, मांसाहारी भोजन, लहसून, प्याज, सहित मद्यपान पर नौ दिनो तक पूर्ण रूप से पाबंदी लगाये रहते है।
कुंवारी कन्या जिनकी विवाह मे अडचने आती है वह कन्या भी मंदिर मे साफ-सफाई कर मन्नते मांगती है। वही निसंतान महिलाये भी मंदिर मे अपनी अपनी सुनी गोद को पूरी करने की मन्नते भी मांगते है। नौ दिनो तक दूर दूर से आकर दंडवत भी करते है।
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