**छठ पर्व : भारतीय संस्कृति में डूबते और उगते सूर्य की अद्वितीय पूजा का प्रतीक**
🔹छठ पर्व प्रमाणित करता है कि भारतीय संस्कृति डूबते और उगते सूर्य दोनों को समान पूजते हैं।
सिटी संवाददाता : प्रो. रामजीवन साहु
जमुई : भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक छठ महापर्व आज समापन को पहुंचा। 36 घंटे के कठिन उपवास और साधना के बाद भक्तों ने उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर इस महापर्व को संपन्न किया। यह पर्व भारत का सबसे लंबा उपवास रखने वाला त्योहार है और सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। जहां अन्य देशों में केवल उगते सूर्य की पूजा की जाती है, वहीं भारत में डूबते और उगते दोनों सूर्य का समान रूप से पूजन होता है, जो भारतीय संस्कृति की गहरी आध्यात्मिकता को दर्शाता है।
छठ पर्व का जनसमूह: आस्था का प्रत्यक्ष प्रमाण :
त्रिपुरारि सिंह घाट, जमुई नगर परिषद अंतर्गत, आस्था और भक्ति का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। बिना जूते-चप्पल पहने, कंकड़ युक्त रास्तों पर चलते हुए हर उम्र के लोग, बूढ़े-बच्चे, स्त्री-पुरुष और युवक-युवतियां नदी की ओर जल या दूध अर्पित करने जा रहे थे। उनके सिर पर सूप-दौरा या पीतल के पात्र, जिनमें पूजन सामग्री रखी हुई थी, और चेहरे पर भक्ति की चमक दिखाई दे रही थी। बांस के बने सूप-दौरा का उपयोग छठ पूजन में पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, हालांकि कुछ लोग अब पीतल के थाली और गमला का भी उपयोग करने लगे हैं।
जिला प्रशासन की सतर्कता और सुरक्षा :
छठ पर्व की महत्ता को देखते हुए जमुई जिला प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए थे। जिला पदाधिकारी श्रीमती अभिलाषा शर्मा स्वयं घाटों का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं का जायजा ले रही थीं। प्रशासन का यह प्रयास था कि भक्तजन बिना किसी कठिनाई के इस महापर्व को शांतिपूर्वक और सुरक्षित रूप से मना सकें।
छठ पर्व, जो आस्था, समर्पण और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का अद्वितीय प्रतीक है, हर साल भारतीय समाज में प्रेम और एकजुटता की भावना को सुदृढ़ करता है।

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