आलेख : संजय कुमार मंडल, जमुई
बेटियां आंगन की आश्रयदात्री छाया, साथ में हों तो सुकून की चित्रात्मक़ छवियां, कुदरत की नैसर्गिक सौंदर्य की प्रतिनिधि, ईश्वरीय दिव्यता की वाहक व पितृसत्ता की मनमुदित करने वाली मंदाकिनी होती हैं। विचलित वेदनाओं, विकराल त्रासदियों व आफत की आहट में बेटियां जिस तरह से शगुन बन जाती हैं। वैसेे इस जमीं पर और कोई आश्वस्ति अडक़र खड़ी नहीं होती। परिवार में बेटियों का फुदकना, चहकना व कड़ोलें करना नीरवता में इंद्रधनुषी रंगों की छटा बिखेरता है। बेटियों का पिता न होकर जीना धरा के कई आशीर्वादों से वंचित रहना है। उनकी विदाई की वेला हमें अहसास कराती है कि वे कितनी नितांत महत्वपूर्ण, आवश्यक अपरिहार्य हैं। उनका होना मात्र ही प्रारब्ध, प्रकृति व जमीनी सत्ता के मूल में है।
बेटियां समस्त सांसारिक कृत्रिमता की घोर विरोधी ईश्वरीय वरदान हैं। अगाध स्नेह, श्रद्धा, प्रेम,आस्था, अपरिभाषित आध्यात्मिक लालित्य व कृपा सतत वाहिनी निर्झरणी बेटियां पिता के कलेजे की मनमोहक तृप्ति हैं, तोष हैं और आत्मा का संतोष हैं। कोई रूमानी आल्हाद, अल्हड़पन व संपन्नता बेटियों के बिना अधूरी है। अवसाद से उत्पन्न खालीपन को जिस तरह बेटियां भरती हैं, वैसा जमीं पर और कोई व्यवस्था नहीं। रौनक लौट आती है पिता के चेहरे पर उनकी याद करने भर से। उनके साथ रहने से कलेजा भर जाता है और न रहने से कलेजा फट भी जाता है। जीवन की कोई खुशी बेटियों के बिना पूर्णता में महसूस नहीं की जा सकती है।
सृष्टि सार्थक नहीं होती बिना बेटियों के। समस्त सांसारिक रचनाधर्मिता ऋणी रहती है बेटियों के आप्लावित आशीर्वादों की। जीवन सुनसान है, अवसान है, अभिशप्त है बिना बेटियों के अवदान के। बेटियां विगत पुण्यों का प्रतिफल होती हैं। आप महती भाग्यशाली हैं बेटियों के साथ, कितने अधूरे हैं कितने लोग बिना बेटियों के!, बेटी थी तो कल था, है तो आज है और होगी तो कल भी होगा। भला बिना बेटी के भी क्या कोई समय होता है ? कदापि नहीं। बेटियां ज्ञान विज्ञान की पाठशाला के वेआश्रम हैं जहां ब्रह्मांड के रहस्यों के दुर्लभ पाठ सीखने को मिलते हैं। एक बेटी के माध्यम से समस्त सांसारिक बेटियों को असीम शुभाशीष।
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