** पूर्वांचल कोकिला शारदा सिन्हा का निधन : बिहार की लोक-संस्कृति को गहरा आघात**
🔹लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन से बिहार में शोक की लहर।
सिटी ब्यूरो रिपोर्ट : राजीव रंजन
नई दिल्ली - सुप्रसिद्ध लोक गायिका, पद्मश्री और पद्मविभूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा, जिन्हें उनकी मधुर आवाज के लिए 'बिहार कोकिला' के नाम से जाना जाता था, का आज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली में निधन हो गया। एम्स ने उनके निधन की पुष्टि की, जिसके बाद उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने ट्विटर पर मां के निधन की जानकारी दी। शारदा सिन्हा पिछले छह वर्षों से ब्लड कैंसर से जूझ रही थीं और पिछले 11 दिनों से एम्स में भर्ती थीं। उनकी तबीयत में गिरावट आने पर 26 अक्टूबर को उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली। इस खबर ने बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश को शोकाकुल कर दिया है। शारदा सिन्हा ने अपने सुरों के माध्यम से न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की लोक-संस्कृति को एक नई पहचान दिलाई थी।
लोक-संगीत की मर्मस्पर्शी आवाज और गूंज
शारदा सिन्हा का नाम एक ऐसी लोक गायिका के रूप में जाना जाता है जिन्होंने भोजपुरी, मैथिली, मगही और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अपनी संगीत यात्रा को आगे बढ़ाया। उनके गाए हुए छठ के गीत, जैसे "केलवा के पात पर उगेलन सुरुजमल" और "पहिले पहिल छठी मईया" जनमानस के बीच विशेष स्थान रखते हैं। उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि उनके गीतों में बिहार की माटी की महक और संस्कृति की गहराई महसूस की जा सकती थी। शारदा सिन्हा के गीतों ने बिहार के गांवों और शहरों में एक नई उमंग पैदा की और उन्हें 'पूर्वांचल कोकिला' की उपाधि दिलाई।
असाधारण सम्मान और योगदान :
शारदा सिन्हा को उनकी अपार प्रतिभा और संगीत में योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1991 में पद्मश्री और 2018 में पद्मविभूषण से नवाजा गया। ये दोनों सम्मान उन्हें भारत की सांस्कृतिक धरोहर में उनके योगदान की मान्यता के रूप में मिले। इसके साथ ही, उनका नाम बिहार के लोक-संगीत का पर्याय बन गया। शारदा सिन्हा ने न केवल भारतीय मंचों पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बिहार के संगीत का परचम लहराया। उनके गीतों ने विदेशों में बसे भारतीयों को भी अपनी माटी से जुड़ने का एहसास कराया।
लोक-संस्कृति की धरोहर को दिया नया आयाम :
शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में बिहार की लोक-संस्कृति को एक नई दिशा दी। उनकी गायकी में केवल सुरों की मिठास ही नहीं, बल्कि बिहार की परंपराओं, संस्कारों और रीति-रिवाजों की झलक भी थी। विशेषकर, छठ पूजा के गीत उनके द्वारा गाए गए गीतों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहे, जो बिहार और पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था का प्रतीक हैं। उनकी आवाज ने पीढ़ियों को बिहार की संस्कृति से जोड़ने का कार्य किया और यह प्रभाव उनकी अनुपस्थिति में भी बना रहेगा।
सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में भारी क्षति :
शारदा सिन्हा का निधन न केवल संगीत जगत के लिए, बल्कि बिहार के सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके निधन पर बिहार के मुख्यमंत्री, कई राजनीतिक नेताओं, कलाकारों, और समाजसेवियों ने गहरी संवेदनाएं व्यक्त की हैं। उनके परिवार के साथ-साथ उनके अनगिनत प्रशंसक भी इस दुखद घड़ी में शोकग्रस्त हैं। उनके निधन से एक युग का अंत हो गया है, और उनकी खाली जगह को भर पाना निकट भविष्य में असंभव लगता है।
जनमानस में उनकी अमर यादें :
शारदा सिन्हा भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत, उनकी आवाज और उनकी संगीत साधना हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगी। उनके गाए गीत हर छठ पर्व पर गूंजते रहेंगे और उनके चाहने वालों को उनकी याद दिलाते रहेंगे। बिहार के लोग उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और उनकी आत्मा की शांति की कामना कर रहे हैं।
अंतिम यात्रा और श्रद्धांजलि कार्यक्रम :
शारदा सिन्हा के पार्थिव शरीर को पटना लाया जाएगा, जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा। हजारों की संख्या में उनके प्रशंसकों, चाहने वालों और संगीत प्रेमियों के शामिल होने की उम्मीद है, जो उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए पहुंचेंगे। इस अवसर पर बिहार की राजनीति, कला, और समाजसेवा के कई बड़े नाम उनके सम्मान में उपस्थित होंगे।
शारदा सिन्हा का निधन बिहार के लिए एक बड़ा झटका है। उनके संगीत ने न केवल लोगों के दिलों को छुआ, बल्कि उनकी गहरी मानवीय भावनाओं और जमीनी जुड़ाव ने उन्हें जनता की लोक गायिका बना दिया। वे हमेशा अपने गीतों के माध्यम से हमारे बीच रहेंगी, और उनकी यादें बिहार की संस्कृति और संगीत में सदैव जीवित रहेंगी।
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