क्या हम सभी प्लास्टिक के गुलाम बन गए है...? 🔹03 जुलाई 2024 : विश्व प्लास्टिक मुक्त दिवस पर विशेष। - City Channel

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Tuesday, July 2, 2024

क्या हम सभी प्लास्टिक के गुलाम बन गए है...? 🔹03 जुलाई 2024 : विश्व प्लास्टिक मुक्त दिवस पर विशेष।

क्या हम सभी प्लास्टिक के गुलाम बन गए है...?


🔹03 जुलाई 2024 :  विश्व  प्लास्टिक मुक्त दिवस पर विशेष।

जमुई : बचपन में जब हम घर से निकलते थे... !  तो मां हाथ से सिला हुआ थैला देकर बाजार से कुछ सामान लाने कहती थी to बाजार में भी कोई भी चीज थैले में या कागज के बने ठोगा (बैग) में दिया जाता था क्योंकि इसका कोई विकल्प ही नही था। 

वहीं समय बदलने के साथ हमारी मानसिकता भी इतनी आरामदायक होती चली गई की हम सभी प्लास्टिक के गुलाम होते चले गए। जीवनशैली बदली, लोगो का जीने का तरीका भी बदल गया। लोग महज 100 मीटर की दूरी भी पैदल चलने से परहेज करते है कपड़े की थैला ले कर बाजार जाना तो ओल्ड पैशन सा हो गया है। हर सामान  खरीदने पर अलग अलग सिंगल यूज प्लास्टिक में लेने की जरूरत महसूस हो गई है। 

ऐसे में यदि रोजाना एक परिवार बाजार से 1-2  सिंगल यूज प्लास्टिक बाजार से घर लाता है तो एक मात्र छोटे शहर में जमुई में यदि 3 लाख परिवार रहते है तो प्रतिदिन 3-6 लाख सिंगल यूज प्लास्टिक की खपत होती है।  त्योहारों ओर शादी विवाह कार्यक्रमों में पत्ते का पत्तल, कटोरी  और स्टील के ग्लास का स्थान लास्टिक ने ले लिया है जिसके उपयोग के बाद रीसाइकिल होना संभव ही नही है।


वहीं दूसरी ओर यदि तथ्य पर जाएं तो भारत में हर दिन 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। प्लास्टिक का आधा हिस्सा सिंगल यूज़ होता है यानी इसे सिर्फ़ एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। चूँकि सभी प्लास्टिक का सिर्फ़ 9% ही रीसाइकिल किया जाता है। 

यहां बताना लाजमी है कि इस सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल औसतन 20 मिनट के लिए ही किया जाता है, लेकिन हर प्लास्टिक को सड़ने में 500 से 1000 साल लग सकते हैं। यानी हमारे दस पीढ़ियों तक इस कचरे का सामना करना पड़ेगा यह स्थिति हर साल इतनी बढ़ती जायेगी की लोगों के जीवन में प्लास्टिक दिखने लगेगा।

यह पर्यावरण के लिए खतरनाक तो है ही। इसके साथ ही हमारे शरीर में प्लास्टिक का अंश प्रवेश कर चुका है जो हमारे शरीर के लिए खतरनाक है हमलोग  कई हानिकारक बीमारी के चपेट में है।  इसके साथ ही यह चौकाने वाली बात यह भी है कि इटली ने एक अध्ययन किया है जिसमें पाया गया है कि 10 स्वस्थ युवा पुरुष में से 6 के शुक्राणु में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है जबकि चीन में इस अद्ययन में आधा प्रतिशत पाया गया  हैं।


वहीं यदि भारत में ऐसे जांच कराया जाय तो  बच्चो के कुपोषण एवं लोगो में लगातार अस्वस्थ होने, का कारण प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग को ही माना जायेगा ।

इस के निदान के लिए राज्य सरकार सहित भारत सरकार ने भी अधिसूचना जारी कर 1 जुलाई  2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक उपयोग पर प्रतिबंध लगा कर सजा और जुर्माना भी तय कर दिया है लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी उस अधिसूचना का धज्जी खुलेआम उड़ाया जा रहा है।

हालांकि इस अधिसूचना पर ना तो सरकार, ना प्रशासन, ना आम लोगो को मतलब है, उन्हें तो आराम से अपने समान लाने के लिए  के लिए  एक प्लास्टिक की जरूरत होती है यदि किसी दुकानदार मना भी कर दें ग्राहक द्वारा खरी खोटी सुना कर अगले दुकान की ओर बढ़ जाता है। 

इसके मुक्ति के लिए लड़ाई इतनी बड़ी है इसे निपटना नामुकिन सा है।  लेकिन लोगों के व्यवहार परिवर्तन अपने बेहतर जीवन जीने के लिए लाना आवश्यक ही है। वर्तमान में मात्र एक दिन के लिए एकल-उपयोग प्लास्टिक को नहीं करें, इसे न खरीदें, इसे अस्वीकार करें, इसका उपयोग न करें।

जी हाँ यह दिन एकल-उपयोग प्लास्टिक के लिए अन्य विकल्प में बदलने का तरीका सीखने को भी प्रोत्साहित करेगा। तभी सच में हमलोग विश्व प्लास्टिक मुक्त दिवस मना पाएंगे। अन्यथा आज का दिन इस दिवस के आयोजन के लिए बड़े बड़े बैठक एवं कार्यक्रम का आयोजन करने से कोई फायदा नहीं।

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